संत श्री राम बालक दास जी के द्वारा ऑनलाइन सत्संग का हुआ आयोजन
संत श्री राम बालक दास जी के द्वारा ऑनलाइन सत्संग का आयोजन वाट्सएप ग्रुप में किया गया जिसमें हजारों भक्तगण जुड़कर अपनी जिज्ञासाओं का समाधान प्राप्त किए
आज की ऑनलाइन सत्संग परिचर्चा में संत श्री राम बालक दास बताया कि शिव जी के मंदिर में चढे नारियल को प्रसाद रूप में ग्रहण करना चाहिए
शिवजी के मूर्ति रुप पर भी चढ़ाए गए नारियल को प्रसाद रूप में ग्रहण करना चाहिए परंतु जिस शिवलिंग को आप पिंड रूप में स्थापित करते हैं उन पर चढ़ाए गए नारियल को जल में विसर्जित कर दिया जाता है जब सावन का महीना आता है तो बहुत अधिक मात्रा में नारियल उन पर चढ़ाए जाते हैं तो उसमें जो मुख्य रूप से पिंड के ऊपर चढ़ाए गए हैं उन्हीं को विसर्जित किया जाना चाहिए बाकी के नारियल को प्रसाद रूप में ही ग्रहण करना चाहिए और तुलसी दल को शिव भोले पर नहीं चढ़ाया जाता इसका मुख्य कारण क्या है कि क्योंकि तुलसी दल विष्णु भगवान को अति प्रिय है जो कि वैष्णव भक्तों के द्वारा पूजा विधि में प्रयुक्त की जाती है भोलेनाथ पर आप बेलपत्र शमी पत्र धतूरा आदि पत्र चढ़ा सकते हैं फिर भी अगर तुलसीदल हम भोलेनाथ पर चढ़ा देते है तो इसमें कोई दोष होगा ऐसा नहीं है कहीं कहीं तुलसी मंजरी शिव पिंड पर चढ़ाने का विधान हमें पुराणों में मिलता है
बाबा जी ने बताया कि कोई भी ग्रंथ को पढ़ने से पूर्व हमें तन से और मन से दोनों से ही पवित्र होना आवश्यक है मन की पवित्रता रखते हुए तन से भी हमें स्नान ध्यान करके ही पवित्र आसन पर बैठकर सही दिशा में मुख रखकर जल का आचमन करके ही ग्रंथ को पढ़ना शुरू करना चाहिए
भोलेनाथ को बेल फल बहुत अधिक प्रिय है इसे आप कच्चा और पक्का दोनों ही रूप में चढ़ा सकते हैं पके फल का रस निकालकर भोलेनाथ का अभिषेक किया जाता है और इसी रस को आप शरबत के रूप में ग्रहण करें यह आपके शरीर में स्फूर्ति एवं चैतन्यता प्रदान करेगाए इसका गोंद हमारे पेट के लिए बहुत अधिक लाभकारी होता है इसके गुदे को आप सीधे भी खा सकते हैं या रस रूप में भी ले सकते हैं और आप इसे सुखाकर भी रख सकते हो और जब चाहे पानी के साथ घोलकर पी सकते है
यज्ञ साक्षात् नारायण का रूप है कलयुग में कहा गया है कि धर्म के चार पद है और इसमें एक पद ही महत्वपूर्ण है वह है दान यज्ञ का सबसे महत्वपूर्ण अंग है यज्ञ जहां भी हो हम तीन प्रकार का दान करते हैं सर्वप्रथम हम अपने तन की सेवा से श्रम दान करते हैं दूसरा अन्न दान करते हैं भोजन सामग्री के रूप मेंऔर तीसरा यज्ञ के पवित्र वातावरण में जाकर हम हमारे तन और मन के विकार का वहां पर त्याग करते हैंए और इन तीनो दान के पश्चात ही हमारा यज्ञ सफल होता है इससे समाज में समरसता और एकता का संचार होता है साथ ही आध्यात्मिक शक्ति भी बढ़ती है यज्ञ के धुएँ औऱ भस्म से हमारा शरीर स्वस्थ बनता है तो यज्ञ का मुख्य कार्य है ष्देहिक देविक भौतिकष् तीनों तापो को दूर करना