केंद्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्रालय के द्वारा आवागमन को सुगम बनाने व दुघर्टनारहित यात्रा सुनिश्चित कराने के उद्देश्य से अलग-अलग राज्यो मे सड़को का जाल बिछाया जा रहा है. छत्तीसगढ़ प्रदेश में ज्यादातर स्टेट हाइवे का हस्तांतरण नेशनल हाइवे को कर दिया गया है लिहाजा यहां भी बड़े पैमाने पर केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय राजमार्ग का निर्माण प्रस्तावित है. इस निर्माण के लिए ज्यादातर जिलो में राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ने भू अर्जन की प्रक्रिया पूरी कर ली है जबकि शेष प्रक्रिया लंबित है.
अफसर, क्लर्क और भू-माफियाओं की सांठगांठ की आशंका.
इसी तरह के भूअर्जन में कोरबा जिले के कटघोरा अनुविभाग (तहसील) में प्रस्तावित नेशनल हाइवे के किनारे मौजूद जमीनों के हेरफेर का बड़ा मामला सामने आया है. सड़क निर्माण के पूर्व जमीनों की इस तरह की बिक्री और खरीद अपने आप मे कई तरह के गम्भीर सवाल खड़े करने वाला है. इस ख़रीदियों से ना सिर्फ राजस्व विभाग को बड़ा नुकसान ही रहा है बल्कि स्वयं केंद्र सरकार की संस्थाओ को भी बड़े स्तर पर चूना लगाया जा रहा है. सबसे दिलचस्प बात यह है कि इस अवैध खरीद फरोख्त में खुद कटघोरा तहसील कार्यालय में पदस्थ एक क्लर्क की संलिप्तता सामने आने की बात कही जा रही है. उक्त
क्या है भू-अर्जन नीति?
सरकार के गाइडलाइंस के मुताबिक नेशनल हाइवे निर्माण हेतु जमीनों के मुआवजे का विशेष प्रावधान है. इसके तहत कृषि भूमि के प्रत्येक एकड़ में 17 लाख रुपये मुआवजा निर्धारित है. यदि एक एकड़ भूमि को दस टुकड़ो में विभाजित कर दिया जाए तो प्रत्येक दस डिसमिल जमीन का मुआवजा 29 लाख रुपये होता है. सरकार के इसी मुआवजा नीति का बेजा फायदा उठाकर भूमाफियाओं के द्वारा कुटेलामुड़ा के चार एकड़ जमीन को 41 टुकड़ो में विभाजित कर बंदरबांट कर लिया गया. इस तरह सरकार को अब प्रत्येक लगभग दस डिसमिल के मुआवजा 29 लाख रुपये भू मालिक को भुगतान किया जायेगा. यह पूरी राशि 11 करोड़ 8 लाख के आसपास है. वही यदि एकड़ के माध्यम से जमीन का मुआवजा दिया जाता तो यह 68 लाख रुपये होता. इस तरह भूमाफियाओं और कटघोरा के अफसर, क्लर्क के सांठगांठ से शासन को करीब 10 करोड़ रुपये के नुकसान उठाना पड़ेगा.