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अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस का इतिहास।

सिमरन गार्डिया:  कोरबा _ महिला दिवस 8 मार्च को मनाया जाता है. इस दिवस की हर साल एक स्पेशल थीम होती है. इस साल इसकी थीम “

: अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च को मनाया जाता है. इस दिवस की हर साल एक स्पेशल थीम होती है. इस साल इसकी थीम “वुमेन इन लीडरशिप: अचिविंग एन इक्वल फ्यूचर इन ए कोविड-19 वर्ल्ड” रखी गई है.
: दुनियाभर में 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है. महिलाओं की आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक सहित विभिन्न क्षेत्रों में भागीदारी बढ़ाने और अधिकारों के प्रति जागरूक बनाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है. इसके साथ ही इस दिवस को मनाने के पीछे एक कारण विभिन्न क्षेत्रों में सक्रिय महिलाओं के प्रति सम्मान प्रकट करना भी है. इस साल की थीम “वुमेन इन लीडरशिप: अचिविंग एन इक्वल फ्यूचर इन ए कोविड-19 वर्ल्ड” है.

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का इतिहास
सबसे पहले अमेरिका में सोशलिस्ट पार्टी के आह्वान पर इस दिवस को 28 फरवरी 1909 में मनाया गया है. बाद में 1910 में सोशलिस्ट इंटरनेशनल के कोपेनहेगन सम्मेलन में इसे अन्तर्राष्ट्रीय दर्जा दिया गया. उस समय इसका मकसद महिलाओं को वोट देने का अधिकार दिलाना था. क्योंकि तब ज्यादातर देशों में महिला को वोट देने का अधिकार नहीं था. इसके बाद 1917 में सोवियत संघ ने इस दिन को एक राष्ट्रीय अवकाश के तौर घोषित किया था. धीरे-धीरे इस दिवस को मनाने की परंपरा विश्व के दूसरे देशों में भी फैल गई.

दुनियाभर में 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है. महिलाओं की आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक सहित विभिन्न क्षेत्रों में भागीदारी बढ़ाने और अधिकारों के प्रति जागरूक बनाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है. इसके साथ ही इस दिवस को मनाने के पीछे एक कारण विभिन्न क्षेत्रों में सक्रिय महिलाओं के प्रति सम्मान प्रकट करना भी है. इस साल की थीम “वुमेन इन लीडरशिप: अचिविंग एन इक्वल फ्यूचर इन ए कोविड-19 वर्ल्ड” है.

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का इतिहास
सबसे पहले अमेरिका में सोशलिस्ट पार्टी के आह्वान पर इस दिवस को 28 फरवरी 1909 में मनाया गया है. बाद में 1910 में सोशलिस्ट इंटरनेशनल के कोपेनहेगन सम्मेलन में इसे अन्तर्राष्ट्रीय दर्जा दिया गया. उस समय इसका मकसद महिलाओं को वोट देने का अधिकार दिलाना था. क्योंकि तब ज्यादातर देशों में महिला को वोट देने का अधिकार नहीं था. इसके बाद 1917 में सोवियत संघ ने इस दिन को एक राष्ट्रीय अवकाश के तौर घोषित किया था. धीरे-धीरे इस दिवस को मनाने की परंपरा विश्व के दूसरे देशों में भी फैल गई.