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नन्हें हाथी शावक की लगातार दूसरी मौत ने विभाग की घोर लापरवाही को उजागर किया है

कटघोरा- विगत 15 दिवस के भीतर दो नन्हें हाथी शावक की संदिग्ध मौत ने वनविभाग की घोर लापरवाही को उजागर किया है । हाथियों की हो रही लगातार मौतों ने विभाग प्रमुख डीएफ़ओ शमा फ़ारू खी की लापरवाही और कर्तव्य के प्रति विमूढता को प्रदर्शित कर दिया है । एक पखवाड़ा पहले केंदई रेंज के लमना बीट में एक हाथी शावक की संदिग्ध परिस्थितियों में शव मिला था जिसे पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने से पहले ही पानी में डूबकर हुई प्राकृतिक मौत कहकर अपने आप को बचा लेने में सफल हो गई थी आज पुनः केंदई रेंज के ही कोरबी बीट में एक और हाथी के बच्चे की संदिग्ध मौत हुई है , इसे भी प्राकृतिक मौत का नाम देकर अपनी ज़िम्मेदारी से भागने का कुत्सित प्रयास किया जा रहा है अब देखना यह कि इस मामले में डीएफ़ओ मेडम की चालाकी और ऊँची पहुँच कितना काम आता है । ग़ौरतलब हो कि २०१७ में ऐसी ही एक घटना जड़गा रेंज में घटित होते होते रह गया था तत्कालीन डीएफ़ओ श्री जगदीशन के कुशल निर्देशन और रेंजर श्री मरकाम के नेतृत्व में झुंड से बिछड़े हाथी के बच्चे को बचा लिया गया था , हाथी के बच्चे को निमोनिया था एक्स्पर्ट की मदद से तीन दिन तक हाथी शावक का उपचार कर सकुशल झुंड में छोड़ा गया था , तब वन विभाग के इस पुनीत कार्य की सभी ने सराहना की थी । २०१९ में एक हाथी के दलदल में फँसकर मौत हो गयी थी जिसे दलदल से निकालने की क़वायद विफल हो गयी थी और तत्कालीन डीएफ़ओ डी॰डी॰ संत को निलम्बित होना पड़ा था तब भी विभाग की उस ठोस कार्यवाही पर वन मंत्री एवं उच्च आला अफ़सरों ने वाहवाही बटोरी थी । आज दो दो हाथी शावक असमय काल के गाल में समा गये परंतु फिर भी क़द्दावर वन मंत्री एवम् विभाग के उच्च आला अफ़सर क्यों चुप्पी साध लिए है ? कहाँ गई इनकी संवेदना और वन्यप्राणी प्रेम भावना? हाथी शावकों को ना तो बचाने का प्रयास किया गया और ना ही उनके मौत के का रणो का पता लगा पाये । ऐसे लापरवाह डीएफ़ओ का पद पर बने रहना , क़द्दावर कहे जाने वाले वन मंत्री मोहम्मद अकबर के निष्पक्षता पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करता है । कहा जा रहा है कि यदि ये डीएफ़ओ कटघोरा वनमंडल में पद पर बने रही तो ना जाने और कितने हाथियों की बलि चढ़ जाएगी क्योंकि डीएफ़ओ शमा फ़ारूखी अकुशल एवम् अयोग्य मानी एवं समझी जा रही है । जब से इनकी पदस्थापना कटघोरा हुई है तब से ये स्टॉप डैम , तालाब निर्माण , ट्री गार्ड के कार्यों में लगी हुई है और सारे अधिकारी कर्मचारियों को लगा रखी है । ऐसे में वन एवं वन्य प्राणियों की सुरक्षा कौन करे ? डीएफ़ओ का कार्य बस इतना रह गया है कि स्टॉप डैम का काम किस ठेकेदार ने किया है उसे बुलाकर कमीशन के लिए सौदेबाज़ी करना और मोटी कमीशन लेकर चेक काटना । इस डीएफ़ओ ने वन मंडल को राजनीति का अखाड़ा बना कर रख दिया है आये दिन जनप्रतिनिधि और ठेकेदारों से झींक झींक होते दिखाई देता है । एक महिला वन रक्षक से अपने निवास में स्थायी रूप से रखकर आया के बतौर सेवा ले रही है तथा कई वन रक्षको को मुखबिर बना कर रखी है जो रोज़ वन परिक्षेत्रों में होने वाली गतिविधियों एवं आने जाने वालों की ख़बर देने का काम करते है । वो इसलिए कि कोई भी रेंजर निर्माण कार्यों में ३५ प्रतिशत कमीशन देकर काम कराने को तैयार नहीं है जिससे ये सभी कार्य अपने रिश्तेदार ठेकेदार से काम करा सके । दूसरी ओर वन रक्षको का सीधा सम्बंध डीएफ़ओ से हो जाने के कारण वन रक्षक रेंजर का सुन नहीं रहे है यही कारण है कि हर रेंज असुरक्षित हो चुका है परिणामस्वरूप अवैध वनो की कटाई , बाँस कटाई और हाथियों का उत्पात चरम पर है । ग्रामीण किसान जान माल के नुक़सान से हताहत हैं वहीं हाथियों को भी असमय काल के गाल में समाना पड़ रहा है ।