PMGSY: सड़क का डामर-गिट्टी गटकने वालों को होगी जेल….
PMGSY: सड़क का डामर-गिट्टी गटकने वालों को होगी जेल….
रायपुर: एसीबी और ईओडब्ल्यू ने पीएमजीएसवाय में सड़क बनाने वाले इंजीनियर और उनके सहयोगियों के खिलाफ चार्जशीट तैयार कर जल्द ही पुख्ता दस्तावेज कोर्ट में रखने जा रही है। पीएमजीएसवाय में संलग्न सभी अधिकारियों और कर्मचारियों पर पुलिस अब शिकंजा कसने के लिए तैयार हो गई है। सरकार की महत्वाकांक्षी योजना प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना को भ्रष्टाचार का दीमक अंदर ही अंदर खोखला कर रहा है। पूरे प्रदेश में इस योजना के तहत बनाई गई सड़कें भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई हैं। कुछ महीने पहले बनी कुछ किमी की सड़कों में ही जगह-जगह दरारें आ गई है। करोड़ों रुपये की लागत से सड़क का निर्माण किया जा रहा है जिसमें नियम-कायदे ताक पर रखे जा रहे हैं। प्रति वर्ष नई पक्की सड़क और पुराने जर्जर सड़कों के निर्माण के लिए शासन द्वारा विभाग को करोड़ों रुपए की राशि छत्तीसगढ़ के अधिकांश जिलों को मिलती है लेकिन ठेकेदार और अधिकारी मिलकर सड़क का घटिया निर्माण कर शासन को करोड़ों का चूना लगा रहे हैं। कोई देखने सुनने वाला नहीं है। कई जिलों में हाल ही में बने दर्जनों सड़कों पर दरारें नजऱ आने की सूचना मिल रही है। मीडिया को ऐसी कई सूचनाएं मिली हैं, लेकिन अधिकारियों तक कैसे सूचना नहीं पहुंच रही यह आश्चर्यजनक है। निर्माण कार्य में शासन द्वारा तय मापदंडों की अनदेखी करते हुए प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना में पक्की सड़कों का कार्य बदस्तूर जारी है। जिससे सड़कों की मजबूती पर सवाल खड़ा हो रहा है। अधिकारियों के पास शिकायत करने पर शिकायत का निराकरण वही कर दिया जाता है। गरियाबंद की ग्रामीण सड़कें जिसमें गोहरापदर से सीनापाली, धुरवागुड़ी से गोहरापदर, गोहरापदर से बनवापारा, घुरमापदर से खोकमा, बजाड़ी से तेतेलखुटी, मुजबाहल से ढोडरा के अलावा बस्तर संभाग, सरगुजा संभाग सहित कवर्धा, बालोद, दुर्ग, कोरबा , सहित प्रदेश में प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के नाम पर भ्रष्टाचार की लगातार शिकायतें मिल रही हैं। लेकिन सरकार इसे संज्ञान में लेने की जगह इसकी अनदेखी कर रही है। जिससे नवनिर्मित सड़कें उबड़-खाबड़ हैं और धसने लगी हैं। सड़क निर्माण में अधिकारियों की मिलीभगत से ठेकेदारों ने भारी लापरवाही की है।
राजधानी रायपुर एवं विभिन्न जिला मुख्यालयों में हर रोज बड़ी संख्या में ग्रामीणों की आवाजाही होती है, जो प्रधानमंत्री सड़क योजना के तहत बनाई गई पक्की सड़कों का इस्तेमाल करते हैं। इस मार्ग पर हजारों लोगों की आवाजाही होती है। क्षेत्र की जनता को उम्मीद थी कि इस सड़क को नए सिरे से बनाया जाएगा और नालो में सममर्सिबल ब्रिज का निर्माण किया जाएगा। लेकिन विभाग द्वारा पुरानी टूटी-फूटी सड़क पर ही डामर का लेप चढ़ाकर जनता की उम्मीदों को गहरा झटका देकर निर्माण कार्य में लीपापोती कर दी जाती है। इन सड़कों पर जगह-जगह छतिग्रस्त पुल-पुलिया भी हैं। उन पुल-पुलियों को भी सिर्फ मरम्मत करके छोड़ दिया गया है जबकि ग्रामीणों एवं जन प्रतिनिधियों का कहना है कि इन पुल-पुलियो का नए सिरे से निर्माण होना था, लेकिन ठेकदारों ने मरम्मत कर ही उसे कागजों में नया बता दिया।
गुणवत्ताहीन काम
करोड़ों रुपए की लागत से बनने वाली ये सड़कें स्तरहीन और निम्न दर्जे की बन रही है. जिन सड़कों को कम से कम 5 बार के लिए अच्छी स्थिति में होने का दावा विभाग कर रहा है, उन सड़कों का आलम यह है कि बनने के 5 दिन बाद ही, साधारण हाथों से सड़कें उखड़ रही है। गरियाबंद जिले के देवभोग ब्लाक में बनी सड़कों का ज्यादातर हिस्सा गुणवत्ताहीन है. कोरबा जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में भी सड़क जो बनने के कुछ समय बाद ही उखडऩे लग गया है। सीलिंग कोट होने के बाद भी सड़क उखड़ रही है. जबकि जिस सड़क को फाइनल कर दिया गया है वह भी साधारण हाथों से ही उखड़ रही है. ग्रामीणों ने ठेकेदार की मनमानी और गुणवत्ताहीन काम की शिकायत सीधे मीडिया से की. मौके पर मीडिया ने भी यह पाया की सड़कें पूरी तरह गुणवत्ता हीन है. ग्रामीण भी मानते हैं कि ऐसी सड़क का 5 साल चलना नामुमकिन है।
निर्माण एजेंसी को अफसरों का संरक्षण
ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि घटिया निर्माण कार्य की जानकारी विभागीय अफसरों को है। इसके बाद भी कार्रवाई करने के बजाय हाथ में हाथ धरे बैठे हुए हैं। निर्माण एजेंसी को विभागीय अफसरों का संरक्षण मिल रहा है। ग्रामीणों ने यह भी आरोप लगाया है कि ठेकेदार द्वारा गुणवत्ता का ध्यान नहीं रखा गया जिससे सड़कों में दरार आनी शुरू हो गई है। चंद महीनों में सड़कें धंसकने के साथ डामर भी उखडऩे लगा है।
विभागीय अधिकारी दे रहे भ्रष्टाचार में साथ
नियम अनुसार सड़क निर्माण की शुरुआत में मुरुम को बिछाते हुए हर एक परत में पानी से भिगोकर प्रेसर रोलर से मुरम को दबाया जाना होता है मगर ठेकेदार ने मुरम की अवैध खनन कर उक्त सड़क की वेस बना डाला मगर पानी की एक बूंद भी सड़क में नही डाला गया न ही रोलर चलाया गया ग्रामीणों के विरोध करने के बाद भी ठेकेदार अपने मनमानी से घटिया सड़क निर्माण कर रहे है और ऐसा गुणवत्ता हीन निर्माण तभी संभव है जब विभागीय अधिकारियों का साठ गांठ हो। कमीशन खोरी के लिए अधिकारी भुगतान में लेट-लतीफी करते हैं जिससे सड़कों का निर्माण पूरा होने में विलंब भी होता है और मनमाफिक कमीशन मिलने पर अधिकारी पेमेंट जारी करते हैं जिसके बाद ही ठेकेदार काम आगे बढ़ाते है वो भी महज सड़क बनी है यह दिखाने के लिए।
प्रलोभन देकर मीडिया में गड़बडिय़ों दबाने की कोशिश
भ्रष्टाचार की खबरें मीडिया में आने पर इसमें लिप्त अधिकारी अपने करीबीयों के माध्यम से खबरें रोकने मीडिया वालों को प्रलोभन देने से भी गुरेज नहीं करते। खबरें रुकवाने के पीछे उनका उच्चाधिकारियों से खौफ या किसी तरह की कार्रवाई का डर नहीं होता अपितु अपने कृत्य पर परदा डालना होता है, ये भ्रष्टाचार कर अपनी तिजोरी तो भरना चाहते हैं लेकिन समाज में नाम खराब होने नहीं देना चाहते इसलिए चाहते हैं कि उनके कारनामें अखबारों-न्यूज चैनलों की सुर्खियां न बने। वैसे इन्हें कार्रवाई की बिलकुल भी चिंता नहीं होती क्योंकि इनके माध्यम से ही उच्चाधिकारियों को हिस्सा और सरकार पर काबिज दल को फंड भी मिलता है।