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कटघोरा: बनिया में हाथी मौत के मामले पर DFO के निलंबन की मांग,,विभाग की लचर व्यवस्था से सुरक्षित नही है वन्यप्राणी…

कटघोरा:बनिया में हाथी मौत के मामले पर DFO के निलंबन की मांग,,विभाग की लचर व्यवस्था से सुरक्षित नही है वन्यप्राणी…

कटघोरा : बनिया में हाथी की मौत को लेकर अब सीधे डीएफओ के निलंबन की मांग होने लगी है,छत्तीसगढ़ जनसहयोग संस्थान के प्रदेश अध्यक्ष दिनेश पांडेय ने हाथी की मौत के मामले पर संज्ञान लेते हुए उच्चस्तरीय जांच की मांग की है जहां इन्होंने मुख्यमंत्री सहित सम्बंधित विभाग को लिखित शिकायत दी है,जहां इन्होंने उक्त घटना में सीधे तौर डीएफओ पर निशाना साधा है, जहां ग्राम बनिया में ग्रामीणों द्वारा हाथी को जहर देकर मौत की नींद सुला दिया गया और विभाग को भनक तक नही लगीं, जबकि ग्राम बनिया बिट मुख्यालय है और बिट क्वार्टर मौजूद है। बावजूद दो दिन बाद विभाग को भनक लगी और आनन फानन में 12 ग्रामीणों पर कार्यवाही कर उन्हें रिमांड पर भेजा गया।

कटघोरा वनमंडल के वनपरिक्षेञ पसान अंतर्गत ग्राम बनिया में 20 अक्टूबर को एक दर्जन से अधिक हाथियों के दल से एक हाथी को ग्रामीणों ने जहर देकर मार डाला और साक्ष्य छुपाने ग्रामीणों ने हाथी को दफन भी कर दिया,लेकिन विभाग के नुमाइंदों को भनक तक नही लगी और भनक लगी तो काफी देर हो चुकी थी,जबकि ग्राम बनिया बिट मुख्यायल है और बिट क्वार्टर भी मौजूद है।विभागीय सूत्रों की माने तो हाथी की मौत 19 अक्टूबर को हो गई थी और विभाग को 20 अक्टूबर को ज्ञात होता है, वही ग्रामीणों की माने तो हाथी की मौत 18 अक्टूबर के रात में हो गई थी जो दो दिनों से हाथी का शव वीरान पड़ा था और सड़ने की कगार पर था,जिसे जनपद के कहने पर ग्रामीणों ने दफन कर दिया था,इस पूरी घटना में मजे की बात यह है कि जब यह घटना हुई तो विभाग के नुमाइंदे रात में ड्यूटी कर ग्रामीणों को समझाइश दे रहे थे ।

जहां इन्हें हाथी के मौत की सूचना प्राप्त हो गई थी,जहां इन्होंने इसकी सूचना वनपरिक्षेञ अधिकारी को दी थी,जहां वनपरिक्षेञ अधिकारी ने डीएफओ को समय रहते अवगत करा दिया था बावजूद हाथी की मौत को हल्के में लिया गया, और दूसरे दिन ग्रामीणों ने हाथी का कफ़न दफन कर दिया,जब मामला दूसरे दिन उजागर हुआ तो विभाग की नींद खुली और तड़फड़ जांच का शिलशिला शुरू हुआ और 12 ग्रामीणों को सलाखों के पीछे भेज दिया गया।अगर विभाग ने समय रहते हाथी की मौत पर संज्ञान लिया होता तो ग्रामीणों को साक्ष्य मिटाने का अवसर नही मिल पाता,इससे साफ जाहिर है कि कटघोरा वनमंडल में वन्यप्राणियों के सुरक्षा की क्या दशा है?

छत्तीसगढ़ जनसहयोग संस्थान के प्रदेश अध्यक्ष दिनेश पांडेय ने कटघोरा वनमंडलाधिकारी की कुत्सित कार्यशैली पर सीधा निशाना साधा है इन्होंने उक्त घटना का जिम्मेदार सीधे डीएफओ को माना है,जिन्हें वन्यप्राणियों की कोई फिक्र नही है,जो मुख्यालय में न रहकर एन टी पी सी में निवास करती है लिहाजा क्षेत्रीय कर्मचारियों में अपने कार्य के प्रति रुचि नहीं रह गई है ।

जिस कारण हाथी की मौत होने की भनक भी इन्हें लगी,और लगी भी तो काफी देर पश्चात।कटघोरा वनमंडलाधिकारी श्रीमती प्रेमलता यादव पूर्व में वर्ष 2015 से 2019 तक कटघोरा उप वनमंडलाधिकारी के पद पर पदस्थ थी,वर्ष 2018-19 में 117000 बेसकीमती वृक्षों की कटाई हुई थी जिसे वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा श्रीमती प्रेमलता यादव को बचाने हेतु 7872 वृक्षों की कटाई होना प्रकट किया था और रुपये 196768 की हानि दर्शा कर अधीनस्थ कर्मचारियों पर कार्यवाही कर मामले को रफा दफा कर दिया गया था,इस मामले के बावजूद श्रीमति प्रेमलता यादव को भा.व.से. हेतु पदोन्नत किया गया।वर्तमान में पुनः इनके कार्यकाल में वनपरिक्षेञ जड़गा अंतर्गत ग्राम तिरखुटि में सैकड़ो पेड़ कटाई का मामला सामने आया है जहाँ स्थानीय तीन ग्रामीणों पर कार्यवाही की बात सामने आई है,आखिर इनकी पदस्थापना के बाद परिस्थितियां विभाग के अनुकूल क्यो नही रह पाती..?

कटघोरा वन मंडल में ही वर्ष 2020 में एक हाथी की मौत पर डीएफओ संत साहब को निलंबित कर दिया गया था,वही वर्ष 2021 में डीएफओ शमा फारूकी के कार्यकाल में भी हाथी की मौत हुई थी जहां इन्होंने अपने कर्तब्यों का निर्वहन करते हुए तत्काल संज्ञान लिया था,बहरहाल वर्तमान डीएफओ प्रेमलता यादव को समय रहते हाथी की मौत का पता चल गया था लेकिन इन्होंने संज्ञान लेने में लापरवाही बरती जिसका नतीजा यह हुआ कि ग्रामीणों ने हाथी का कफ़न दफन कर दिया।अब बड़ा सवाल यह है कि वनमंडलाधिकारी प्रेमलता यादव को जब हाथी मौत पर अवगत करा दिया गया था तो इन्होंने त्वरित कार्यवाही क्यो नही की..? क्या इन्हें हाथी की मौत से कोई सरोकार नही था..? अब विभाग का इस मामले पर क्या रुख होगा यह अहम हो सकता है।

हाथी को जहर देना कितना मुनासिब..

कटघोरा वन विभाग की माने तो बनिया के ग्रामीणों ने हाथी को जहर मार डाला था फिर रातोरात उसका कफ़न दफन कर दिया गया,यहां एक बात गले से नही उतर रही,जब ग्राम बनिया में हाथियों ने दस्तक दी उस दरमियान विभागीय टीम भी हाथियों पर नजर रख ग्रामीणों को समझाइश दे रही थी,तो ग्रामीणों ने कब हाथी को जहर दे दिया जबकि हाथी एक दर्जन से ऊपर की संख्या में थे।अगर ग्रामीणों द्वारा ऐसी किसी वारदात अंजाम दिया गया था तो क्या केवल एक हाथी ही जहर सेवन का शिकार हुआ..? बाकी हाथी किस बिना पर सुरक्षित रह गए..? यह समझ से परे है।जबकि हाथी को सबसे बुद्धिमान प्राणी माना गया है,जो झुंड में रहते है।बनिया में हाथी मौत के पीछे क्या है रहस्य ..? क्या वाकई ग्रामीणों ने किसी वारदात को अंजाम दिया था..? कही विभाग अपने आपको शाकपाक बताने का प्रयास तो नही कर रहा..? खैर वजह चाहे जो भी हर रात के बाद सबेरा जरूर होता है,एक दिन इस घटना का राज भी सामने जरूर आएगा।