आखिर कर ली शिक्षाकर्मियों ने संविलियन की जंग फतह…. आदेश निकलने के बाद हो गया है संविलियन तय…. कैसे बनाया शिक्षाकर्मियों ने सफलता का रोडमैप…आखिर क्या रहा शिक्षाकर्मियों की सफलता का मूल मंत्र
रायपुर 24 जुलाई 2020।आखिरकार लंबे जद्दोजहद के बाद शिक्षाकर्मियों ने सरकार से अपने हक में आदेश जारी करवाने में सफलता हासिल कर ही ली है , यह आदेश कई मायने में बेमिसाल है क्योंकि जहां पिछली सरकार ने चुनाव में हार जीत को देखते हुए संविलियन का आधा अधूरा निर्णय लिया था वही इस बार शिक्षाकर्मियों ने नई तरीके से बात रखकर चुनावी जीत हार से दूर सरकार से अपने हक में निर्णय करा लिया है इसके मायने तब और भी ज्यादा बढ़ जाते हैं जब सड़क पर उतरकर प्रदर्शन कर रहे नई भर्ती के उम्मीदवारों को दूर-दूर तक सफलता की रोशनी तक दिखाई नहीं दे रही है । पिछली सरकार ने शिक्षाकर्मियों को संविलियन देते समय जहां 8 वर्ष का वर्षबंधन रखा था, वही तत्कालीन विपक्षी पार्टी कॉन्ग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में 2 वर्ष की सेवा अवधि पूर्ण कर चुके शिक्षाकर्मियों के संविलियन का वादा किया था ।
ऐसे में कांग्रेस की सरकार बनते ही संविलियन से वंचित शिक्षाकर्मियों ने अपनी आवाज बुलंद करनी शुरू की लेकिन यह आवाज कमजोर हो चुकी थी क्योंकि जिनका संविलियन हो चुका था उनका मूल मांग अब अपनी पूर्व सेवा की गणना और क्रमोन्नति, पदोन्नति जैसे मुद्दे हो चुके थे क्योंकि पुराने शिक्षाकर्मियों ने 20 साल यह लंबी लड़ाई लड़ी थी और उन्हें अपनी सेवा समाप्ति से पहले सरकार से और बहुत कुछ हासिल करना बाकी है ।
अलग अभियान ने दिलाई पहचान , नवनिर्वाचित विधायकों को मिला मान-सम्मान
ऐसे में पहले बजट में नए शिक्षाकर्मियों को असफलता हाथ लगी, इसके बाद 2018 के आंदोलन में मीडिया में मोर्चा संभालने वाले और लगातार टीवी डिबेट में शिक्षाकर्मियों का पक्ष रखने वाले विवेक दुबे ने अपने पुराने संगठन से नाता तोड़कर संविलियन अधिकार मंच का गठन किया और धीरे-धीरे संविलियन से वंचित शिक्षाकर्मियों को जोड़ा , बाद में नई नवेली शिक्षाकर्मियों की टीम ने एक अलग ही तरह का अभियान चलाया जिसमें प्रदेश के सभी विधायकों को उनकी तरफ से एक ज्ञापन सौंपा गया जिसमें संविलियन का निर्णय लेने के लिए गुहार लगाई गई और नवनिर्वाचित विधायकों को यह महसूस कराया गया कि यदि आप शिक्षाकर्मियों का साथ देते हैं तो उनका संविलियन अवश्य हो जाएगा ऐसा शिक्षाकर्मियों का अटूट भरोसा है , इसके ठीक बाद नगर निगम के चुनाव सामने आ गए और नगर निगम चुनाव के ठीक बाद शिक्षाकर्मियों ने फिर से एक बार सत्ता पक्ष के दरवाजे पर दस्तक दी और विधायकों को फिर से मार्मिक निवेदन पत्र सौंपते हुए संविलियन के लिए गुहार लगाई , इसका जोरदार असर भी हुआ और प्रदेश के अधिकांश विधायकों और मंत्रियों ने अपने ही मुख्यमंत्री को अनुशंसा पत्र लिखा और शिक्षाकर्मियों की इस मांग को पूरा करने के लिए निवेदन किया इधर टि्वटर, फेसबुक और लोकवाणी जैसे कार्यक्रम में भी सिर्फ और सिर्फ शिक्षाकर्मियों के संविलियन की ही चर्चा हो रही थी , बिना सरकार को कोई धमकी दिए और बच्चों की पढ़ाई प्रभावित किए अपनी तरह के अलग आंदोलन ने असर दिखाया और सरकार ने 3 मार्च की अपने बजट में केवल और केवल शिक्षाकर्मियों के 1 वादे सम्पूर्ण संविलियन को पूरा किया । 1 जुलाई को प्रदेश के उन तमाम शिक्षाकर्मियों का संविलियन होना प्रस्तावित हुआ जिनकी 2 वर्ष की सेवा अवधि पूर्ण हो चुकी थी लेकिन कोरोना महामारी ने इस बार खेल बिगाड़ दिया और 1 जुलाई को होने वाला संविलियन टल गया लेकिन इसके बाद भी शिक्षाकर्मियों ने हिम्मत नहीं हारी और जब ऐसा लग रहा था कि आने वाले समय में भी शिक्षाकर्मियों के लिए कुछ नहीं होगा तो फिर एक नए अभियान ने जन्म लिया जिसमें अपने नन्हे-मुन्ने बच्चों के साथ शिक्षाकर्मियों ने मुख्यमंत्री के नाम मार्मिक अपील की जिसमें निवेदन से ज्यादा इस बात का विश्वास जताया गया कि उन्हें सरकार पर पूरा भरोसा है कि वह उनका संविलियन अवश्य करेंगे । अम्बिकापुर से लेकर बस्तर तक चले इस अभियान ने पुरे सोशल मीडिया में धूम मचा दी और कैबिनेट बैठक के ठीक पहले मीडिया में भी इसी अभियान की सुर्खियां बनी एक बार फिर शिक्षाकर्मियों के सामूहिक प्रयास ने असर दिखाया और कैबिनेट में सरकार ने इस बात पर मुहर लगा दी कि भले ही विपरीत परिस्थितियां हैं लेकिन 1 नवंबर से शिक्षा कर्मियों का संविलियन कर दिया जाएगा इसके बाद आज आदेश भी जारी कर दिया गया है जिससे शिक्षा कर्मियों का संविलियन पूरी तरह तय हो चुका है ।
आंदोलन का नया ट्रेंड हुआ सेट , सोशल मीडिया पर कर्मचारियों को जागा भरोसा
इधर नए नवेले शिक्षाकर्मियों ने आंदोलन का नया ट्रेंड भी सेट कर दिया है जिसमें अपनी मांगों के लिए चुनावी वर्ष का इंतजार करने की कोई जरूरत नहीं है और न ही बच्चों की पढ़ाई बाधित करने की कोई आवश्यकता है उन्होंने बता दिया है कि बिना नुकसान पहुंचाए भी अपना मांग सरकार तक पहुंचाया जा सकता है और उनसे पूरा भी करवाया जा सकता है यही वजह है कि अब संविलियन अधिकार मंच की तर्ज पर क्रमोन्नति अधिकार मंच समेत कई अन्य मंच बनते नजर आ रहे हैं और कभी अनुभवहीन समझे जाने वाले नए शिक्षाकर्मियों की राह पर धीरे-धीरे पुराने शिक्षाकर्मी नेता और संगठन भी चलना शुरू कर चुके हैं । आज आदेश जारी होने के बाद भी शिक्षाकर्मी सरकार को अपना धन्यवाद देना नहीं भूले हैं और उन्होंने बकायदा ट्विटर पर धन्यवाद की झड़ी लगा दी है स्वभाविक सी बात है कि सरकार को भी इस बात का संतोष होगा की नई नवेले शिक्षाकर्मी सरकार की इस बड़ी घोषणा का एहसान तो मान रहे हैं क्योंकि अक्सर घोषणाओं में मीन मेख निकालकर कर्मचारी उसके विरोध में जुट जाते हैं और इसके बाद एक धारणा तैयार हो जाती है कि इस वर्ग को कितना भी कुछ क्यों ना दे दिया जाए यह सदैव विरोध ही करेंगे इस लिहाज से भी इसे कर्मचारियों का नया दृष्टिकोण मानकर बेहतर कहा जा सकता है कि जो मिला उसके लिए धन्यवाद अदा करते हुए फिर अपनी बात नए सिरे से रखी जा रही है और तरीका धमकी का नहीं निवेदन का