बिलासपुर में करोड़ों रुपए बर्बाद कर “बाजारों के कब्रगाह” बना रहा है नगर निगम, बसने के पहले ही उजड़ चुके हैं, निगम के बनाए 3 बाजार
बिलासपुर : नगर निगम में एक तरफ कई दशकों से पैसों की कमी का रोना लगातार बना हुआ है। इसके बावजूद अव्यावहारिक और फालतू योजनाओं पर शाही खर्च करने की निगम की दुष्प्रवृत्ति भी यथावत बनी हुई है। इसे समझाने के लिए बिलासपुर नगर निगम के द्वारा किए गए तीन कार्यो पर नजर डालना ही पर्याप्त होगा। निगम के द्वारा बिलासपुर शहर में बड़े जोर शोर विभिन्न वार्ड में तीन सब्जी बाजारों का निर्माण किया गया था। इन सब्जी बाजारों के निर्माण से पहले नगर निगम के द्वारा बड़े-बड़े शब्द बाद शहर के लोगों को दिखलाया गए थे। लेकिन निगम के अफसरों की मूर्खता पूर्ण और फालतू योजनाओं के कारण इन तीनों बाजार को अपनी निर्माण के साथ ही श्मशानी सन्नाटे का जैसे अभिशाप ही मिल गया। इनमें एक बाजार राजकिशोर नगर में सुधाताई गोडबोले सब्जी मार्केट के नाम से (बिविप्रा के दौर में)बनाया गया। लेकिन बंनने के वर्षों बाद भी इस बाजार में सब्जी दुकानों की कभी रौनक नहीं आ पाई। इसके 10 सालों बाद सरकंडा में भी इसी तरह करोड़ों रुपए खर्च कर एक और सब्जी बाजार का जोर शोर से निर्माण किया गया। लेकिन इसका निर्माण करने वाले नगर निगम के अफसरों ने कभी यह नहीं सोचा कि श्मशान घाट के बाजू में सब्जी लेने कौन जाएगा। इसका परिणाम यह हुआ कि सरकंडा में मुक्तिधाम से लगा यह सब्जी बाजार भी रौनक आने के पहले ही श्मशानी सन्नाटे का शिकार हो गया। और आज तक करोड़ों रुपए की लागत से बनाया बाजार सूना पड़ा हुआ है। इसी तरह नगर निगम के द्वारा ही एक बार और करोड़ों रुपए के खर्च से तोरवा मंडी के पास किसान बाजार का निर्माण किया गया। इस बाजार के निर्माण पर भी अव्यावहारिक रूप से खर्च किए गए करोड़ों रुपए बर्बाद हो गए और यह बाजार भी आज तक आबाद नहीं हो सका। इन तीनों ही बाजारों के गर्भपात के लिए निगम के वे अहंकारी अफसर पूरी तरह जिम्मेदार हैं जो पूरी तरह फालतू तथा अव्यावहारिक योजनाएं बनाकर निगम का पैसा पानी में डाल रहे हैं। नगर निगम को अपनी किसी भी योजना को आकार देते समय उसकी व्यवहारिकता और उपयोगिता पर भी प्रमुखता के साथ ध्यान देना चाहिए। अगर ऐसा किया जाता तो सरकंडा में मुक्तिधाम शमशान घाट की बगल में सब्जी बाजार बनाने की मूर्खता से बचा जा सकता था। इन तीनों अनुपयोगी सब्जी बाजारों के निर्माण पर गरीब नगर निगम के करोड़ों करोड़ों रुपए व्यय हुए हैं। पर अफसोस की बात यह है कि निगम को हुए इस नुकसान और फालतू खर्च की जिम्मेदारी किसी पर भी नहीं डाली गई। अगर ऐसा किया गया होता तो शायद शहर में एक के बाद एक तीन ऐसे सब्जी बाजार नहीं जाते, जो बसने के पहले ही उजड़ कर, अपना खुद का “कब्रिस्तान” बन गये !