कोरबा : ऐसे पढ़ेगा इंडिया…तो कैसे बढ़ेगा इंडिया…! शासकीय घोषणाओं पर टिकी शिक्षा व्यवस्था, पांच वर्ष से अधूरे प्राथमिक शाला भवन में बच्चे गढ़ रहे अपना भविष्य
ऐसे पढ़ेगा इंडिया…तो कैसे बढ़ेगा इंडिया…! शासकीय घोषणाओं पर टिकी शिक्षा व्यवस्था, पांच वर्ष से अधूरे प्राथमिक शाला भवन में बच्चे गढ़ रहे अपना भविष्य
कोरबा/पोड़ी उपरोड़ा:-“स्कूल आ पढ़े बर, जिनगी ला गढ़े बर” जैसे ध्येय वाक्य को लेकर कदमपारा प्राथमिक शाला पढ़ने जाने वाले बच्चे ठेकेदार की लापरवाही व प्रशासनिक उदासीनता की वजह से निर्माणाधीन स्कूल भवन में बैठकर अपना भविष्य गढ़ने को मजबूर है। जिला प्रशासन द्वारा यहां गत पांच वर्ष पहले स्कूल भवन निर्माण हेतु स्वीकृति तो दे दी गई लेकिन इस ओर शायद ध्यान न दिए जाने के परिणामस्वरूप भवन निर्माण कराने वाले ठेकेदार ने स्कूल का आधा- अधूरा निर्माण कराकर छोड़ दिया, जिसका खामियाजा यहां पढ़ने वाले बच्चों को भुगतना पड़ रहा है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार जिले के पोड़ी उपरोड़ा विकासखण्ड अंतर्गत ग्राम पंचायत कुटेशर नगोई के कदमपारा मोहल्ला में संचालित पुराने प्राथमिक शाला भवन के अत्यंत जर्जर स्थिति को ध्यान में रख यहां नवीन स्कूल भवन निर्माण कराए जाने हेतु जिला प्रशासन द्वारा गत पांच वर्ष पहले जिला खनिज न्यास मद से लाखों की राशि स्वीकृत की गई थी। तब ठेकेदार द्वारा इसका निर्माण कार्य प्रारंभ कराया तो गया किंतु दीवार खड़ी कर व छत ढालकर निर्माण अधूरा छोड़ दिया गया जो आज पर्यन्त उसी हालत में है। आधे- अधूरे निर्मित उक्त शाला भवन में न तो खिड़की दरवाजे लगाया गया है, न ही दीवारों में प्लास्टर कार्य कराया गया। यहां तक कि जमीन भी बिना ढलाई व प्लास्टर के छोड़ दिया गया है। जिस पर बैठकर छोटे- छोटे बच्चे अपनी पढ़ाई पूरी कर रहे है। इस अव्यवस्था के कारण बारिश के दिनों में यहां पढ़ने वाले बच्चों की अघोषित छुट्टी करने की भी मजबूरी रहती है। जानकार बताते है कि इस स्कूल भवन का निर्माण कराने वाले ठेकेदार ने स्वीकृत राशि तो पूरी आहरित कर लिया पर भवन निर्माण का कार्य पूर्ण नही कराया। जिसके कारण यह प्राथमिक शाला निर्माण की बाट जोह रहा है जिसमें पहली से पांचवी तक के बच्चे शिक्षा ग्रहण करते हुए अपना भविष्य उज्ववल बनाने की जद्दोजहद कर रहे है। जिस ओर संबंधित अधिकारियों ने भी शायद संज्ञान नही लिया है। ऐसी स्थिति में कल का भविष्य कहे जाने वाले बच्चों का भविष्य कितना उज्ववल रहेगा यह सोचने का विषय है। ऐसे में सरकार की शिक्षा व्यवस्था व योजनाओं के क्रियान्वयन पर ध्यान डाला जाए तो खाली दूर के ढोल सुहावने नजर आते है।